अवधुत गायञी

अवधूत गायत्री मंत्र :- यह गायत्री मंत्र अघोर क्रिया का हैं अतः कोई भी सज्जन बिना सतगुरु मार्गदर्शन में नहीं करें।

सतनमो आदेश।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।ॐ गुरुजी अवधूत अवधूत भाई भाई।अवधूत खोजों घट के मांही।एक अवधूत का सकल पसारा।एक अवधूत सभी से न्यारा।उस अवधूत की संगत करना।जिस संगति से पार उतरना।उत्तराखण्ड से योगी आया।ऊँचे चढ़ के नाद बजाया।नाद बजा के ब्रम्ह जगाया।ऐसा योगी कभी नहीं आया।शैली सिंगी बटुआ लाया।बटुवें में काली नागिन।काली नागिन किसकी चेली।गगन मण्डल में फिरें अकेली।काली नागिन को मार कर तलें बिछालो मेरें भाई।तब न होगी आवा जाई।हम बिगड़े सो बिगड़े भाई।तुम बिगड़े सो राम दुहाई।हमारे सतगुरु तो बहुरंगी।सबके संगी।सबका भेद बतायेंगे।अनघड़ के चेले रहे अकेलें।जति सती को शीश नवायेंगे।इस विधि दुनिया को योगी कहलायेंगे।पात्र फोड़ पवित्र कर लूं हाकिम का मुँह काला कर दूं।राजा कर दूं भैसा।मढ़ी कब्रिस्तान दला डूंगरा।रुख वृक्ष की छायां।सुन रे हँसा कहाँ से आया।तीन लोक चौदह भुवन सप्त पाताल से आया।सब कुल की लज्जा मिटा।सब घर भिक्षा लेनें जा।कोढ़ी कपटी से कैसे जीते।कैसे हारें।हिंदु तुर्क एक ही जानें।चलती पवन रोक दूँ।धरती उलट दुं।आसमान पलट दुं।रोड़िया खोड़ीया टुंडीया हाथी नोबत कर दूं।उलटी ख़ाक।रस्ता सुरसरी मुरसरी।योगेश्वर बढ़े योग के ध्यान।कौंन चेला लोभी लालची।आडलो कपड़ा दूध का दूध।पानी का पानी।सिद्ध का मार्ग साधक कर जानी।इतना अवधूत गायत्री मंत्र जाप सम्पूर्ण भया।गंगा गोदावरी त्र्यम्बकं क्षेत्र कोलागढ़ पर्वत की अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ श्री सदाशिव शम्भुजति गुरु गोरक्षनाथ जी ने नवनाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटि सिद्धों को पढ़ कथ कर सुनाया।श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश।आदेश।आदेश।

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